श्रीमद् भागवत् महापुराण से

श्रीमद् भागवत् महापुराण से
शब्दब्रम्हणि निष्णातो न निष्णायात् परे यदि ।
श्रमस्तस्य श्रमफलो ह्यधेनुमिव रक्षतः ॥
(श्रीमद् भाग॰ ११/११/१८)
प्यारे उद्धव ! जो पुरुष शब्दमय वेदों और शास्त्रों का तो पारगामी विद्वान हो परन्तु परमब्रह्म (परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम्) के ज्ञान (तत्त्वज्ञान) से शून्य हो, उसके परिश्रम का कोई फल नहीं है। वह तो वैसा ही है जैसे बिना दूध की गाय का पालने वाला।
परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप भगवत्तत्त्वम् रूप परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रम्ह-खुदा-गॉड-भगवान् शरीर नहीं है, अपितु एक सर्वोच्च सत्ता-शक्ति है जो अविनाशी है, अजन्मा है, आत्मतत्त्वम् या गॉड या अलम् नाम-रूप वाला तत्त्वरूप या शब्दरूप है। जो एक मात्र परम आकाश रूप परमधाम-बिहिस्त-Paradise के वासी हैं। वही युग-युग में पृथ्वी, नारद, ब्रम्हा तथा शंकर जी आदि के करुण पुकार पर भू-मण्डल पर अवतरित होकर किसी भी शरीर को धारण कर, दुष्टों का संहार कर, सज्जनों का राज्य कायम कर लुप्त हुये सत्य सनातन धर्म की स्थापना करते हुये अपने में अनन्य श्रद्धा-भक्ति रखने वाले परम जिज्ञासुओं को माया का पर्दा हटाकर अपने असल (यथार्थ) रूप परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप गॉड-अलम् रूप खुदा-गॉड-भगवान को तत्त्वज्ञान के द्वारा जनाते हैं, दिखाते हैं तथा बात-चीत करते हुये पहचान कराकर सेवार्थ अपने शरण में स्वीकार कर प्रिय निष्काम सेवकों एवं भक्तों का उद्धार मुक्ति-अमरता देते तथा जनमानस के स्थिति-परिस्थिति का सुधार करते हैं।
अतः उपर्युक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद के मंत्रों, गरुण पुराण के माध्यम से श्री विष्णु जी की वाणी तथा श्री मद् भगवद् गीता और श्रीमद् भागवद् के माध्यम से श्रीकृष्ण जी महाराज की वाणी से यह स्पष्टतया प्रमाणित कराया गया है कि परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रम्ह-खुदा-गॉड-भगवान या परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् गॉड-अलम् शब्दरूप भगवत्तत्त्वम् नाम-रूप वाला ही है दूसरा कोई नाम रूप नहीं है यानी मन्त्र-तन्त्र स्वाध्याय और योग-साधना, अध्यात्म वाले ॐ-सोsहँ-हँसो-शिव ज्योति आदि आदि को नहीं। अतः यही जानने, देखने तथा पहचानने और प्राप्त करने योग्य होता है। इसी के माध्यम से ही अवतारी सत्ता की पहचान होती है, क्योंकि परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप भगवत्तत्त्वम् के अवतरण और धारण करने वाली शरीर के सिवाय इस पूरे ब्रम्हाण्ड में कोई भी आत्मतत्त्वम्-गॉड-अलम् नाम-रूप वाले परमात्मा को यथार्थ रूप से जना, दिखा एवं पहचान करा ही नहीं सकता है। उदाहरण स्वरूप पिछले उद्धरणों को देखें ।
अब श्री आद्यशंकराचार्य जी की भी वाणी जो विवेक चूड़ामणि के रूप में है, से भी प्रमाणित कराया जा रहा है कि अद्वैत्तत्त्वम् या आत्मतत्त्वम् या परमतत्त्वम् ही एकमात्र जानने योग्य है। इसके सिवा मुक्ति का दूसरा कोई उपाय नहीं है और मुक्ति ही दुर्लभ मानव योनि का अभीष्ट लक्ष्य होता है। श्री आद्यशंकराचार्य जी ने भी कहा है कि आत्मा और परमात्मा का एकत्त्व बोध हुये बिना मुक्ति हो ही नहीं सकती और आत्मतत्त्वम् रूपी परमात्मा की प्राप्ति के बिना एकत्त्व बोध होना सम्भव ही नहीं है।

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