तथाकथित गायत्री देवी
सम्बन्धी भ्रामक धारणा से बचें
भगवत् प्रेमी पाठक बन्धुओं
! प्रस्तुत शीर्षक ‘तथाकथित गायत्री देवी सम्बन्धी भ्रामक धारणा’ के
अंतर्गत एक ऐसे रहस्य का पर्दाफाश किया जा रहा है, जिसके
चक्कर में लाखों नर-नारी, विद्वान, आचार्य
एवं विशेष रूप से पण्डित-जन फँसे हुये हैं। हो सकता है के यह बात, आपको तथाकथित गायत्री देवी के विशेष निष्ठा होने के कारण आपकी भावनाओं पर
आघात सा उत्पन्न करे परन्तु इस सत्य मत से आपको आघात नहीं लगना चाहिए क्योंकि आप
तथाकथित गायत्री देवी रूप भ्रामक निष्ठा में फँसे हुये हैं।
आपने गायत्री को देवी
मानने से पूर्व थोड़ा भी विचार करने का प्रयत्न नहीं किया। यदि किए होते तो आप इस
प्रकार अन्ध भक्त नहीं बने होते। यह बात मैं मानने से इनकार नहीं करता हूँ कि आप
बहुत शिक्षित, विद्वान, शास्त्रों के ज्ञाता, पण्डित तथा आचार्य हैं। आप विद्वान सुशिक्षित बन्धुओं से मेरा एक ही
प्रश्न है कि क्या आप उपाधियों (डिग्रीज़) को जान-सुनकर यह मान लूँ कि आप गलती नहीं
कर सकते हैं या आप फँसे नहीं हैं? आप लोग इतने बड़े विद्वान
हैं कि आप लोगों के पीछे चलकर तथाकथित गायत्री देवी रूपी काल्पनिक और झूठी देवी के
नाम पर फँस-फँसकर करोड़ों व्यक्तियों का धर्मभाव ही ‘सत्य
सनातन धर्म’ अर्थात् ‘सत्य भगवद् धर्म’ से गिरकर पुनः चौरासी लाख योनियों में में असुर भाव में पहुँचता जा रहा
है।
आप बन्धुओं जरा विचार तो
करें कि क्या किसी भी बात को स्वीकार कर उस पर चलने के पूर्व उसके अर्थ को, उसकी
स्थिति-परिस्थिति को तथा उसके नाम-रूप-स्थान आदि को सही ढंग से जान-समझ लेना नहीं
चाहिए ? गायत्री कोई देवी तो है ही नहीं, गायत्री कोई मन्त्र भी नहीं बल्कि गायत्री तो मात्र एक छन्द है। ॐ देव (ब्रम्ह)
से सम्बंधित मन्त्र गायत्री छन्द के माध्यम से वर्णित है। यह मन्त्र, गायत्री मन्त्र कदापि नहीं हो सकता है। पहले तो इस मन्त्र के अन्दर
गायत्री का कोई जिक्र नहीं है—दूसरे इस मन्त्र का संकेत पुलिंग, ॐ-देव-प्रधान है, देवी प्रधान नहीं। यहाँ यह तर्क
नहीं पेश हो सकता है कि तेज स्वरूप देव (भर्गो देव) किसी लिंग में नहीं आते हैं, क्योंकि देव शब्द स्पष्ट करता है कि पुरुष वाचक मन्त्र है, स्त्री वाचक नहीं।
यह उक्ति कि ‘माता पिता
से अधिक प्यार देती है इसलिए ब्रम्ह या ॐ-देव को माता कहा जाएगा’, -- सरासर (पूर्णतः) गलत है। अधिक प्यार के लिए पिता जी को माता जी नहीं
कहा जा सकता। शब्दों का अर्थ तथा प्रयोग मनमाना नहीं होना चाहिए। अतः देवता को कभी
देवी नहीं मानना चाहिए। देव शब्द का संकेत कुछ और, देवी शब्द
का संकेत कुछ और ही होता है।
गायत्री नामक छन्द में
उल्लिखित होने के कारण मन्त्र के अभीष्ट ‘ॐ-देव’ को
विस्थापित कर दिया जाय? हटा दिया जाय-मिटा दिया जाय? और उनके स्थान पर गायत्री छन्द के नाम पर स्त्रीलिंग देवी की काल्पनिक और
झूठी आकृतियाँ-मूर्तियाँ गढ़-गढ़वाकर गायत्री देवी घोषित कर-करवा देना क्या सही और
उसचित है? क्या यह देव द्रोहिता नहीं है? आप स्वयं पढ़ें-जानें-समझें और निर्णय लें-दें कि क्या यह ‘ॐ देव’ विस्थापन रूप देव द्रोहिता ही असुरता नहीं है
? क्या इसे केवल यह कहकर स्वीकार कर लिया जाय कि इसे बहुत से
ऋषियों ने प्रतिपादित किया और समर्थन दिया है ? नहीं ! कदापि
नहीं। चाहे जिस किसी का भी प्रतिपादन-समर्थन हो, यदि वह देव
द्रोहिता या असुरता से युक्त हो, तो वह कभी भी स्वीकार नहीं
होनी चाहिए। कदापि नहीं होनी चाहिए। क्योंकि सत्यता और यथार्थता इसे कभी भी
स्वीकार नहीं कर सकती। किसी
परम्परा के नाम पर ‘सत्य’ को समाप्त नहीं किया जा सकता है। हाँ ‘सत्य’ के नाम पर परम्परा को सहज ही समाप्त किया जा
सकता है। निःसंदेह सत्य के नाम पर परम्परा को समाप्त भी करना पड़े तो कोई सोच-विचार
नहीं करना चाहिए क्योंकि ‘सत्य’ सर्वोपरि
होता है—होना भी चाहिए ।
बंधुओं
पहले आप मंत्र (ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः
प्रचोदयात्) की तुलनात्मक रूप से नीचे दी गई व्याख्या को देखें, बातें स्पष्ट हो जाएँगी। मात्र शब्दार्थ पर थोड़ा विचार
करें-
-----श्रीराम शर्मा द्वारा दिया गया मंत्र का अर्थ:-----
1. ॐ = भारतीय धर्म;
2. भूः = आत्म विश्वास;
3. भुवः = कर्मयोग;
4. स्वः = स्थिरता;
5. तत् = जीवन विज्ञान; सवितु=शक्ति संचय; वरेण्यं=श्रेष्ठता;
6. भर्गो=निर्मलता; देवस्य=दिव्य दृष्टि;
7. धीमहि = सदगुण;
8. धियो=विवेक; योनः=संयम;
9. प्रचोदयात्=सेवा।
नोट – श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘गायत्री महाविज्ञान’ (प्रथम भाग) के पृष्ठ संख्या – 133 से उपर्युक्त उद्धृत।
-----श्रीराम शर्मा द्वारा दिया गया मंत्र का अर्थ:-----
1. ॐ = भारतीय धर्म;
2. भूः = आत्म विश्वास;
3. भुवः = कर्मयोग;
4. स्वः = स्थिरता;
5. तत् = जीवन विज्ञान; सवितु=शक्ति संचय; वरेण्यं=श्रेष्ठता;
6. भर्गो=निर्मलता; देवस्य=दिव्य दृष्टि;
7. धीमहि = सदगुण;
8. धियो=विवेक; योनः=संयम;
9. प्रचोदयात्=सेवा।
नोट – श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘गायत्री महाविज्ञान’ (प्रथम भाग) के पृष्ठ संख्या – 133 से उपर्युक्त उद्धृत।
-----सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी
परमहंस द्वारा उपर्युक्त मन्त्र का दिया गया अर्थ :-----
1. ॐ = ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का संयुक्त रूप से बोध कराने वाला संकेत;
भूर्भुवः स्वः = तीनों देवों के अलग-अलग वास स्थान का संकेत है;
2. भूः =(श्री ब्रम्हा जी का);
3. भुवः =(श्री विष्णु जी का);
4. स्वः =(श्री महेश जी का);
5. तत्सवितुर्वरेण्यं = सूर्य द्वारा वरणीय अथवा सूर्य का भी उपास्य देव रूप उस;
6. भर्गो देवस्य = तेजस्वरूप देव का;
7. धीमहि = ध्यान करता हूँ;
8. धियो = बुद्धि; यो = जिससे; नः = हमारी; (जिससे हमारी बुद्धि)
9. प्रचोदयात् = शुद्ध रहे या सत्कर्म के प्रति उत्प्रेरित रहे।
1. ॐ = ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का संयुक्त रूप से बोध कराने वाला संकेत;
भूर्भुवः स्वः = तीनों देवों के अलग-अलग वास स्थान का संकेत है;
2. भूः =(श्री ब्रम्हा जी का);
3. भुवः =(श्री विष्णु जी का);
4. स्वः =(श्री महेश जी का);
5. तत्सवितुर्वरेण्यं = सूर्य द्वारा वरणीय अथवा सूर्य का भी उपास्य देव रूप उस;
6. भर्गो देवस्य = तेजस्वरूप देव का;
7. धीमहि = ध्यान करता हूँ;
8. धियो = बुद्धि; यो = जिससे; नः = हमारी; (जिससे हमारी बुद्धि)
9. प्रचोदयात् = शुद्ध रहे या सत्कर्म के प्रति उत्प्रेरित रहे।
आप पाठक बन्धुजन उपरोक्त को
देखते हुये यह निर्णय स्वयं लें कि क्या श्रीराम शर्मा द्वारा दिया गया उपर्युक्त शब्दार्थ-भावार्थ
सही है ? क्या ॐ, वरेण्यं, भर्गो और धियो
का शब्दार्थ भ्रामक नहीं है? पुनः जरा सोचिए कि क्या अन्य शब्दों
का शब्दार्थ गलत नहीं है ? क्या ‘योनः’ एक ही शब्द है ? क्या ‘योनः’ का अर्थ संयम, ‘भूः’ का अर्थ आत्म विश्वास, ‘भूवः’ का अर्थ कर्मयोग, ‘देवस्य’ का अर्थ दिव्य दृष्टि और ‘धीमहि’ का अर्थ सद्गुण ही है ? और बताइए कि क्या इस मन्त्र
का अभीष्ट ‘देवस्य’ स्त्री प्रधान है या
पुरुष प्रधान ? यह स्त्री प्रधान देवी कहाँ से और कैसे ? आप पाठकजन श्रीराम शर्मा द्वारा किये गये शब्दार्थ को ध्यान पूर्वक पढ़कर सन्त
ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस द्वारा किये गये शब्दार्थ से तुलना करें और बताइए
कि जब उपर्युक्त मन्त्र के संस्थापक व प्रचारक श्रीराम शर्मा ही उसका सही अर्थ भाव
नहीं जानते तब वे समाज का क्या सुधार करेंगे ? आखिर गायत्री परिवार
जनमानस में भ्रम व भटकाव क्यों पैदा कर रहा है ? क्या हम लोगों
को इस कार्य को नहीं रोकना चाहिए ?
पाठक बन्धुओं से अनुरोध है
कि थोड़ा विचार करते हुये आप भी देखें कि इस मन्त्र के अन्तर्गत किस शब्द का अर्थ ‘गायत्री’ है ! देखने से पाता चल जाएगा कि इसे गायत्री मन्त्र कहना कितनी बड़ी शैतानियत
की बात (कार्य) है। इस ॐ-देव मन्त्र से ॐ-देव शब्द को गायत्री जो मात्र एक छन्द है, को प्रतिस्थापित करना तो स्पष्टतः देव-द्रोही (ब्रम्ह द्रोही) कार्य है। थोड़ा
भी विचार किया जाय कि यह ॐ-देव प्रधान मन्त्र है परन्तु कितनी बड़ी नास्तिकता झलक रही
है कि इस ॐ-देव प्रधान मन्त्र से छन्द प्रधान मन्त्र कायम किया जा रहा है। क्योंकि
जिस प्रकार अनुष्टुप, त्रिष्टुप आदि छन्द हैं, ठीक उसी प्रकार गायत्री भी मात्र एक छन्द ही है। यह ॐ-देव मन्त्र गायत्री
छन्द में गाया गया है।
इतना ही नहीं बन्धुओं चारों
तरफ तथाकथित गायत्री देवी के काल्पनिक और झूठी चित्र तथा मूर्तियाँ भी बना-बना कर, धर्म भीरु
समाज के लोगों को धर्म पाठ से विचलित कर (भ्रमित कर) अपना स्वार्थ साधा जा रहा है।
भगवत् प्रेमी जनमानस जिज्ञासुओं के धन-धरम दोनों का ही दोहन-शोषण किया जा रहा है। आजकल
श्रीराम शर्मा (जो मृतक हो चुके हैं इसलिए अब उनके पीछे उन्ही की तरह उनके समाज) ने
जनमानस को ब्रम्हदेव से गायत्री छन्द की तरफ लौटाने की ठेकेदारी ले लिया है ! आश्चर्य
ही नहीं, महानतम् आश्चर्य की बात यह भी है कि श्री श्रीराम शर्मा
भी अवतारी बनने का स्वप्न देख रहे थे तथा अपना प्रचार भी बड़े ज़ोर-शोर से प्रारम्भ कर-करवा
दिये हैं। ऐसा शैतानियत कार्य करने-कराने वाला यदि अवतारी नहीं बनेगा तो फिर कौन बनेगा
? इतना ही नहीं, श्री श्रीराम शर्मा जैसे
बहुसंख्यक आचार्यगण एवं पण्डित जन भी गायत्री को वेद माता तथा देव माता भी घोषित कर
रहे हैं। इन मूढ़ों को, जढ़ियों को, अन्धों
को एवं नास्तिकों को अन्त्यज (चांडाल) की तरह त्याग देना चाहिए, क्योंकि ये अपने तो धर्म भ्रष्ट हैं ही, जो इनके सम्पर्क
में आयेगा वह भी धर्म भ्रष्टता की ओर उन्मुख होने लगेगा।
गायत्री न कोई देवी है, न देवताओं
की माता है और न वेद की ही माता है। हाँ, कवियों की माँ अवश्य
है, नास्तिकों की भी माँ है और श्री श्रीराम शर्मा जैसे धर्म
भ्रष्टों की भी माँ है क्योंकि इसी के आधार पर ये सपरिवार राज-भोग रहे हैं। इनके जैसे
पाखण्डी लोगों द्वारा ॐ-देव के अस्तित्व को समाप्त करके उनके स्थान पर मनमाने काल्पनिक
एवं झूठी देवी पैदा करके देव (ब्रम्ह) मन्त्र को गायत्री मन्त्र घोषित करना स्पष्ट
रूप से एक प्रकार का ॐ-देव द्रोही कार्य है। देव द्रोही ही असुर कहलाता है।
संसार के विभिन्न क्षेत्रों
माँ के कुछ निम्नलिखित रूप प्रचलित हैं –
१-
गृहस्थ व्यक्ति की माँ स्त्री रूपी शरीर को कहा जाता
है।
२-
किसानों की माँ का रूप धरती को कहा जाता है।
३-
कवियों, वैयाकरणिकों,
साहित्यिकों एवं पण्डितों की माता गायत्री छन्द है।
४-
योगियों-साधकों की (शंकर जी की भी) माता खेंचरी मुद्रा
है।
५-
ज्ञानियों की माता आदि-शक्ति है जो परमात्मा की अर्द्धांगिनी
हैं। यों मुख्यतः ज्ञानी के माता-पिता दोनों परमात्मा ही हैं।
अतः बन्धुओं ! गायत्री न कोई
देवी है और न कोई मन्त्र ही। गायत्री-देवी सम्बन्धी धारणा पूर्णतः भ्रामक, गलत एवं झूठी
है। यह मन्त्र तेजस्वरूप ॐ-देव का है। अतः इसे देव मन्त्र या ब्रम्ह मन्त्र कहना ही
उचित है।
अनुष्टुप, त्रिष्टुप
जैसा ही गायत्री भी मात्र छन्द ही है। उपर्युक्त समस्त उद्धरणों से यह बात स्पष्ट हो
जानी चाहिए कि देव-दुर्लभ मानव शरीर पाकर भी मनुष्य यदि अपनी मुक्ति तथा भगवत् प्राप्ति
नहीं कर लेता तो आखिर इस मनुष्य-शरीर का क्या प्रयोजन है? खाना, उसकी व्यवस्था, तत्पश्चात् पाखाना, पुनः खाना, उसकी व्यवस्था, तत्पश्चात्
पाखाना--- नित्य के यही कर्म हैं। ये कर्म तो सभी योनियों में होते ही आए हैं। जुटाना-खाना-पाखाना, जुटाना-खाना-पाखाना में ही सारा जीवन गवाना ! पुनः पुनः पुनः ! यह भी कोई
जीवन होता है?
देव द्रोहिता रूप तथाकथित
गायत्री प्रचार से रक्षा हेतु आहवान
सद्भावी सत्यान्वेषी
बन्धुओं। आजकल एक घोर ढोंगी-पाखण्डी व्यक्ति और उसका समाज तथाकथित गायत्री के
प्रचार-प्रसार में समाज के धन और धर्मभाव का शोषण करते हुये बेहाया पौध की तरह
फैलने-फैलाने में बड़े तेजी से लगा हुआ है । वास्तविकता यह है कि उन सबों को
तथाकथित गायत्री मन्त्र का शब्दार्थ भी, मालूम नहीं है। वे सब ॐ देव मन्त्र
“ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो
यो न: प्रचोदयात्!'' को गायत्री छन्द मात्र में उद्धृत होने
के कारण तथाकथित गायत्री मन्त्र, तथाकथित गायत्री देवी,
तथाकथित गायत्री परिवार आदि-आदि को काल्पनिक रूप से पैदा करके
(हालाँकि उन्हीं सबों के तरह से ही पूर्व में भी कुछ ने ऐसा ही किया था जिसको
बताकर) और ॐ देव को विस्थापित करके उसके स्थान पर काल्पनिक देवी को स्थापित कर उसे
गायत्री नाम दे रखा है । आप सब मेरी इन दो-एक बातों पर जरा ध्यान दें कि—
गायत्री छन्द मात्र में
उद्धृत होने के नाते ॐ देव मन्त्र के अभीष्ट ॐ देव को समाप्त कर उनके स्थान पर
काल्पनिक देवी को स्थापित कर प्रचारित करना-कराना क्या देव द्रोहिता नहीं है? असुरता
नहीं है ? क्या यह मन्त्र देवी (स्त्रीलिंग) प्रधान है या 'भर्गोदेवस्य (पुलिंग) प्रधान? जब यह मन्त्र ॐ देव
(पुलिंग) प्रधान है तब यह देवी (स्त्री लिंग) कहाँ से आ गयी ? क्या प्यार पाने के लिये पिता जी को माता जी कहकर बुलाया जाय और उनके
फोटो-चित्र को स्त्री रूपा बना दिया जाय ? यही आप सबकी
मान्यता है ? पिता जी के नाम-रूप के जगह पर काल्पनिक कोई
स्त्री रूपा को पिताजी स्वीकार कर लिया जाय ? और वास्तविक
पिता जी को हटा दिया जाय ? उन्हें समाप्त कर दिया जाय ?
यही 'देव संस्कृति' संस्थापन
कहलायेगा जिसमें ॐ देव को ही समाप्त करके उसके जगह पर काल्पनिक देवी को स्थापित कर
दिया जाय ? क्या यह देव द्रोहिता नहीं है? नि:संदेह यही देव द्रोहिता और यही असुरता भी है । क्या कोई भी मेरी इन
बातों का समुचित समाधान देगा ?
सच्चाई और अपनत्व हेतु आप
से अनुरोध है कि आप इस देव-द्रोहिता रूप असुरता से बचकर मन्त्र के वास्तविक
मान्यता को (ॐ देव मन्त्र-नाम और ॐ देव रूप भर्गो देवस्य' को) महत्व
दें, न कि बिल्कुल ही मिथ्यात्व पर आधारित काल्पनिक तथाकथित
गायत्री नाम-रूप मन्त्र और देवी को । सच्चाई जानने के लिए उन्हीं लोगों जैसे पूर्व
के ऋषि-महर्षियों का कथन अथवा कुछेक ग्रन्थों में आये हुये कुछेक उध्दरण मात्र पर
आश्रित रहना पर्याप्त और उचित नहीं है । बुध्दिमानी इसमें नहीं कि कोई कुछ भी कहे
तो आँख बन्द करके मान लिया जाय। मन्त्र के अर्थ-भाव और अभीष्ट को स्वयं भी
जानें-देखें कि स्वयं इस मन्त्र का ईष्ट-अभीष्ट कौन-है-देव (पुलिंग) या देवी
(स्त्रीलिंग)?
चन्दा के नाम पर अपने
मिथ्या महत्वाकांक्षा पूर्ति हेतु अपने अनुयायियों से भीख मँगवा-मँगवा कर और नौकरी
के रूप में उनको कमीशन देकर अधिकाधिक धन उगाही करने मात्र के लिये ही तथाकथित धर्म
नाम आयोजन आयोजित करना क्या जनता और जनमानस के धन और धर्म भाव का शोषण करना नहीं
है ? ऐसे शोषण से जनता और जनमानस को नि:संदेह बचाने के लिये, सही और समुचित लगे तो मेरे अभियान में, सद्भाव के
साथ लगकर आप यश-कीर्ति के भागीदार बनें और ऐसे आसुरी दुष्प्रचार का भण्डाफोड़ कर
जनमानस में इस सच्चाई को रखकर उनके शोषण से उनकी रक्षा करने में अपने को
लगें-लगावें ।
इन उपर्युक्त बात-व्यवहार को
शास्त्रीय और प्रयौगिक आधार पर गलत ठहराने वाले को राह खर्च रूप में ५१ हजार रुपया
तो दिया ही जाएगा (ताकि विश्व के किसी भी कोने से जाँच हेतु आ-जा सके), और उसके प्रति
समर्पण-शरणागत भी हो जाया जायेगा। मगर सत्य ही होने पर जाँच कर्ता को भी समर्पित-शरणागत
करना-होना रहना ही पड़ेगा। सब भगवत् कृपा !
सच ‘एक’ है, ‘एक’ रहेगा, शेष सब बकवास है।
सच ‘एक’ अवतरित हुआ है, बकवासों का अब नाश है।
आडम्बर-ढोंग-पाखण्ड मिटावें, अपने को सत्पुरुष
बनावें ॥