परमतत्त्वम् रूप आत्मत्त्वम् शब्दरूप भगवत्तत्त्वम् की पहचान

परमतत्त्वम् रूप आत्मत्त्वम् शब्दरूप भगवत्तत्त्वम् की पहचान
 प्रस्तुत परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप गॉड-अलम् रूप परमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान् कोई साधारण वस्तु या बात नहीं है जिसे जो चाहे वही बता दिया करेगा। यह वह गहन तथा सूक्ष्मातिसूक्ष्म से भी सूक्ष्म विषय है जो एकमात्र परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप गॉड-अलम् रूप परमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान् के लिए ही सुरक्षित होता है। चाहे जो कोई भी देवी या देवता हो, ऋषि-महर्षि हो, योगी या यति हो या चाहे जो कोई भी हो, परमतत्त्वम् की जानकारी किसी को भी नहीं होती-रहती है। इसका कारण यह है कि परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप गॉड-अलम् रूप परमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान् सदा परम आकाश रूप परमधाम में ही रहता है। जहाँ पर कोई भी हो, तब तक पहुँच ही नहीं सकता है जब तक कि यह परमतत्त्वम् परमधाम से भू-मण्डल पर अवतरित होकर तत्त्वज्ञान (सत्यज्ञान) द्वारा परम जिज्ञासु व परम श्रद्धालु अपने समर्पित-शरणागत अनन्य भक्तों को अपना तत्त्व (परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप गॉड-अलम्) को जना, दिखा व बात-चीत करते-कराते हुये अपना पूर्ण परिचय-पहचान नहीं करा देते हैं।
यह परमतत्त्वम् –भू-मण्डल पर रहता ही नहीं जिससे कि कोई उसे जान पाये। जड़वादी धारणावालों व आत्मवादी धारणा वालों कि जड़ता, मूढ़ता, भ्रम व अहंकार, मिथ्याज्ञानाभिमान आदि था कि दोनों वर्गों ने ही परमतत्त्वम् रूपी परमात्मा को प्रत्येक भूतप्राणियों के ह्रदय व कण-कण में झूठे ही घोषित कर-करा दियेँ हैं जो परमात्मा व धर्म के प्रति घोर अन्याय व जनमानस में भ्रामक-प्रचार रूप धोखा ही है। असलियत तो यह है कि जिस परमधाम में परमब्रम्ह, परमात्मा रहते हैं वहाँ कोई पहुँच ही नहीं पाता और जो कोई उसके विशेष कृपा का पात्र बनकर पहुँच गया, वह वहाँ से लौटकर आता ही नहीं। फिर उस परमात्मा को बिना उसके अवतरण का कौन जना, दिखा व बता सकता है? अर्थात् परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप गॉड-अलम् रूप परमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान् को जनाने, दिखाने व बात-चीत कराते हुये तत्त्वज्ञान द्वारा ही पहचान कराने वाला ही खुद परमतत्त्वमं रूपी परमात्मा का अवतार हो होता है।
भू-मण्डल पर जब-जब दुष्ट, दुराचारियों, अत्याचारियों के साथ-साथ जब प्रशासकीय कर्मचारी, अधिकारी तथा जड़वादी धारणा वाले अधिकांशतः दुष्टता, घुसखोरी-भ्रष्टाचार व अत्याचार करना शुरू कर देते हैं जिससे जनमानस में त्राहि-त्राहि की आवाज गूँजने लगती है। जनमानस का जनजीवन असुरक्षित, अव्यवस्थित व सज्जन पुरुष चारों तरफ से मसला-कुचला जाता है और धर्म का अस्तित्त्व व परमात्मा पर विश्वसनीयता की पूर्णतया समाप्ति होने लगती है। साथ ही सामान्य से लेकर सिद्ध पतनोन्मुखी सोsहँ साधक योगी-महात्माओं तक द्वारा भी मिथ्याज्ञानाभिमानवश स्वयं अवतारी, तत्त्वज्ञानदाता, सद्गुरु व भगवान् बन जाने वाले अहंकारियों की जब-जब अधिकता हो जाती है; तब-तब परमधाम का वासी परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप गॉड-अलम् रूप परमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान् का किसी मानव शरीर के माध्यम से प्राकट्य या अवतार होता है और उसी शरीर के द्वारा परम जिज्ञासु व परम श्रद्धालु, अनन्य-भक्त व परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पित-शरणागत लोगों को तो वह तत्त्वज्ञान रूप सत्यज्ञान द्वारा भक्ति, सेवा, प्रेम, पापमुक्ति, मुक्ति, अमरता, परमशांति, परमपद व परमधाम में स्थान देता है तथा दुष्टों, भ्रष्टाचारियों, अत्याचारियों का सुधार अन्यथा संहार करता व कराता है और सत्पुरुषों का राज्य स्थापित कर कराकर पूर्णतः शांतिमय व आनन्दमय स्थिति-परिस्थिति यानी अमन-चैन का जो अत्याधिक परिश्रमी हो, भरा-पूरा समाज स्थापित करता है।
अतः प्रत्येक भगवत्प्रेमी बंधुओं से यह बता देना है कि परमतत्त्वम्, परमात्मा-खुदा-गॉड शरीर नहीं होता है बल्कि एक सर्वोच्च शक्ति सत्ता है जिसे हम शांतिमय ढंग से तत्त्वज्ञान के द्वारा ही जान व बात-चीत करते हुये पहचान सकते हैं। अन्य किसी भी यहाँ तक कि योग-साधना-अध्यात्म द्वारा भी नहीं क्योंकि ये सब तो तत्त्वज्ञान के अंशवत् जानकारी मात्र ही हैं। शरीर-जीव-ईश्वर-परमेश्वर यथार्थतः ये चार हैं।        
चारों को दिखलाने और मुक्ति-अमरता देने हेतु भगवन् लेते अवतार हैं। ॐ-सोsहँ-हँसो-शिव-ज्योति भी भगवान नहीं; भगवान् परमतत्त्वम् है। स्वाध्याय, अध्यात्म ही ज्ञान नहीं; ज्ञान तत्त्वज्ञान है।
कण-कण में भगवान्, यह घोर है अज्ञान। सबमें है भगवान, मूर्खतापूर्ण है यह ज्ञान।।
कण-कण में शक्ति, शरीरों में जीवात्मा, आकाश में आत्मा और परम आकाश  रूप परमधाम में सदा ही रहते हैं परमात्मा, सिवाय अवतार बेला में एकमेव एक अवतारी शरीर मात्र के।

--------सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस 

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